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Saturday, August 3, 2019

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला'
जन्मकाल – 1899 ई.
जन्मस्थान – महिषादल राज्य (बंगाल)
निवास – गढ़ाकोला (बंगाल)
मृत्युकाल – 1961 ई.
पिता – रामसहाय त्रिपाठी
पत्नी – मनोरमा देवी
पुत्री – सरोज
बचपन का नाम – सूर्य कुमार
दर्शन – अद्वैतवाद
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अब हम इनकी रचनाओं के बारें में पढेंगे ,रचनाओं को कालक्रम से बताया गया है
प्रमुख रचनाएँ –
अनामिका – 1923 ई. नये पत्ते – 1946 ई. सरोज स्मृति – 1935 ई.
परिमल – 1930 ई. बेला – 1946 ई. चतुरी चमार
गीतिका – 1936 ई. अर्चना – 1950 ई. राग-विराग
तुलसीदास – 1938 ई. आराधना – 1953 ई. गर्म पकौङी
अणिमा – 1943 ई. गीत गुंज – 1954 ई. रानी और कानी
कुकुरमुत्ता – 1948 ई. राम की शक्ति पूजा – 1936 ई. स्फटिक शिला
निराला की सर्वप्रथम कविता – जुही की कली – 1916 ई.

निराला की अंतिम कविता – ’पंत्रोकंठित जीवन का विष बुझा हुआ’ है।

नोट:- रामविलास शर्मा के मतानुसार इनकी सर्वप्रथम कविता ’भारत माता की वंदना’ (1920 ई.) मानी जाती है।

रचनाओं के संबंध में विशेष तथ्य –
1. इनकी ’अनामिका’ एवं ’गीत-गुंज’ रचनाओं के दो-दो संस्मरण प्रकाशित हुए हैं।

प्रथम संस्मरण प्रकाशन वर्ष
अनामिका 1923 ई.
गीत-गुंज 1954 ई.

द्वितीय संस्मरण प्रकाशन वर्ष

अनामिका 1938 ई.

गीत-गुंज 1959 ई.

2. निराला का प्रथम काव्य-संग्रह ’अनामिका’ (1923 ई.) एवं अंतिम काव्य-संग्रह ’सांध्यकाकली’ (1969 ई.) है, जो इनके मरणोपरांत प्रकाशित हुआ।

3. ’अनामिका’ एवं ’परिमल’ कविता संग्रहों में इनकी प्रकृति-प्रेम, सौन्दर्य चित्रण एवं रहस्यवाद संबंधी कविताओं को संकलित किया गया है।

4. ’परिमल’ काव्य संग्रह में इनकी निम्न प्रसिद्ध कविताओं को संगृहीत किया गया है –

1. जुही की कली 2. संध्या-सुंदरी 3. बादल-राग
4. विधवा 5. भिक्षुक 6. दीन
7. बहू 8. अधिवास 9. पंचवटी प्रसंग
नोट:- ’परिमल’ में छायावाद के साथ-साथ प्रगतिवाद के तत्व भी विद्यमान हैं।

5. ’जूही की कली’ कविता में प्रकृति के माध्यम से मानवीय वासनाओं की अभिव्यक्ति अत्यंत प्रभावोत्पादक रूप में हुई है।

6. ’गीतिका’ रचना में कवि ने अपनी भावनाओं को संगीत के स्वरों में प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है।

विषयवस्तु की दृष्टि से इसके गीतों को निम्न चार वर्गों में विभक्त किया जा सकता है –

स्तुतिपरक या प्रार्थनापरक गीत
नारी सौन्दर्य संबंधी गीत
प्रकृति संबंधी गीत
विचार प्रधान गीत

7. तुलसीदास (1938 ई.) – यह निराला जी का श्रेष्ठ प्रबंधात्मक काव्य है। इसमें कवि ने गोस्वामी तुलसीदास के माध्यम से भारतीय परम्परा के गौरवशाली मूल्यों की प्रतिष्ठा का प्रयास किया है। इसमें तुलसीदास द्वारा अपनी पत्नी ’रत्नावली’ से मिलने के लिए उसके पीहर (नैहर) चले जाने एवं पत्नी द्वारा फटकार लगाये जाने पर गृहस्थ-जीवन को त्याग कर रामोपासना में लीन होने की घटना का वर्णन किया गया है। इसी रचना के लेखन के कारण यह माना जाता है कि ये ’तुलसीदास’ को अपना सर्वप्रिय कवि मानते थे।

8. सरोज स्मृति (1935 ई.)- यह एक शोक गीत है जिसे कवि ने अपनी 18 वर्षीय पुत्री सरोज की करुण-स्मृति में लिखा था। इसे हिन्दी साहित्य संसार का सर्वाधिक प्रसिद्ध शोकगीत कहा जाता है। इसमें वात्सल्य एवं करुण दोनों रसों का अद्भुत सामंजस्य दृष्टिगोचर होता है।

9. राम की शक्ति पूजा (1936 ई.) – यह एक लघु प्रबंधात्मक काव्य है, जिसमें निराला का ओज अपनी पूर्ण शक्ति के साथ प्रस्फुटित हुआ है। इस रचना पर ’कृतिवास रामायण’ का प्रभाव दृष्टिगोचर होती है। यह शक्तिकाव्य जिजीविषा एवं राष्ट्रीय चेतना की कविता है।

10. कुकुरमुत्ता (1942 ई.) – इसमें कवि ने पूँजीवादियों पर तीखा व्यंग्य किया है। इसमें कवि ने संस्कृत शब्दावली का प्रयोग नहीं करके ’उर्दू’ व ’अंग्रेजी’ के शब्दों का प्रचुर प्रयोग किया है। इसमें कवि ने सर्वहारा वर्ग की प्रशंसा और धनवानों की घोर निंदा की है।

11. अणिमा – इसमें तीन प्रकार के गीत संगृहीत हैं –

1. भक्ति प्रधान
2. विषादमूलक
3. विचारपरक
इसमें कवि का दृष्टिकोण अधिक यथार्थवादी और शैली अधिक सरल है।

12. नये पत्ते – इसमें कवि की सात व्यंग्य प्रधान कविताओं का संग्रह किया गया है।

कवि के संबंध में अन्य तथ्य –
⇒ हिन्दी साहित्य जगत् में निराला के लिए ’महाप्राण’ शब्द का प्रयोग भी किया जाता है। गंगाप्रसाद पाण्डेय ’महाप्राण निराला’ आलोचना पुस्तक लिखकर यह नाम प्रदान किया था।

⇒ ये हिन्दी कविता को छंदों की परिधि से मुक्त करने वाले कवि माने जाते हैं, अर्थात् इनको ’मुक्तक छंद का प्रवर्तक’ भी कहा जाता है।
नोट – मुक्तक छंद को ’केंचुआ’ या ’रबर’ छंद भी कहते हैं।

⇒ इनको छायावाद, प्रगतिवाद इन तीनों आंदोलनों का पथ-प्रदर्शक भी कहा जाता है।

⇒ ये छायावाद के ’रुद्र (महेश)’ माने जाते हैं।

⇒ डाॅ. रामविलास शर्मा ने इनको ’ओज एवं औदात्य का कवि’ कहा है।

⇔ ये विवेकानंद जी को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे।

⇒ इन्होंने ’मतवाला’ एवं ’समन्वय’ नामक दो पत्रों का संपादन कार्य भी किया था।

⇔ द्विवेदीकालीन कवियों में इनको सर्वाधिक विरोध का सामना करना पङा था।

⇒ प्रसिद्ध ऐतिहासिक लेख – ’भावों की भिङन्त’ यह लेख बालकृष्ण शर्मा ’नवीन’ द्वारा संपादित ’प्रभा’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ था, जिसमें यह सिद्ध किया गया था कि निराला की बहुत-सी कविताएँ रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविताओं की नकल हैं। इस लेख ने तत्कालीन साहित्य जगत् में हलचल मचा दी थी।

⇔ ’रविवार’ को जन्म लेने के कारण सर्वप्रथम इनका मूल नाम ’सूर्यकुमार’ रखा गया था, जिसे सन् 1917-18 ई. में बदलकर इन्हांेने ’सूर्यकान्त’ कर दिया।

⇒ निराला ’परिमल’ की भूमिका में लिखते हैं –

’मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है। मनुष्यों की मुक्ति कर्मों के बंधन से छुटकारा पाना है और कविता की मुक्ति छंद के शासन से अलग हो जाना।’

⇔ निराला ने ’कवित्त’ को ’हिन्दी का जातीय छंद’ कहा है।

⇒ निराला को ’ओज एवं औदात्य’ का कवि माना जाता है। इनकी तुलना अमरीकी कवि वाल्ट व्हिटमैन से की जाती है।

⇔ निराला को छायावाद का ’श्लाका पुरुष’ भी कहा जाता है।

⇒ आचार्य नंददुलारे वाजपेयी ने निराला को ’शताब्दी का कवि’ कहा है।

⇔ डाॅ. नामवर सिंह ने निराला की कविता को ’शताब्दी का काव्य’ कहा है।

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की कविता –
1. ’बादल राग’ 5. ’वर दे’
2. ’संध्या सुंदरी’ 6. ’सम्राट अष्टम एडवर्ड के प्रति’
3. ’यमुना के प्रति’ 7. तोङती पत्थर’।
4. ’वर दे वीणा वादिनी’

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के उपन्यास –
अप्सरा (1931 ई.) प्रभावती (1936 ई.)
अलका (1933 ई.) चोटी की पकङ
निरूपमा (1936 ई.) काले कारनामे (1950 ई.)
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की पंक्तियाँ –
’दुख ही जीवन की कथा रही। ’

’जीर्ण बाहु है, शीर्ण शरीर, तुझे बुलाता कृषक,
अधीर ए विप्लव के वीर।’

’देश काल के शर से बिंध कर
यह जागा कवि अशेष छवि धर।’

’’अमिय गरल शशि सीकर रविकर, राग-विराग भरा प्याला।
पीते हैं जो साधक, उनका प्यारा है मतवाला।।’’

’लखकर अनर्थ आर्थिक पथ पर
हारता रहा मैं स्वार्थ समर।’

’ये कान्यकुब्ज कुल कुलांगार, खाकर पत्तल में करें छेद,
उनके कर कन्या अर्थ खेद।’

’ब्राह्मण समाज में ज्यों अछूत’।

’धिक जीवन जो पाता ही आया विरोध’।

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