गगग

Saturday, October 5, 2019

मुकरियाँ ( अमीर खुसरों) रात समय वह मेरे आवे। भोर भये वह घर उठि जावे॥ यह अचरज है सबसे न्यारा। ऐ सखि साजन? ना सखि तारा॥ नंगे पाँव फिरन नहिं देत। पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत॥ पाँव का चूमा लेत निपूता। ऐ सखि साजन? ना सखि जूता॥ वह आवे तब शादी होय। उस बिन दूजा और न कोय॥ मीठे लागें वाके बोल। ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल॥ जब माँगू तब जल भरि लावे। मेरे मन की तपन बुझावे॥ मन का भारी तन का छोटा। ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा॥ बेर-बेर सोवतहिं जगावे। ना जागूँ तो काटे खावे॥ व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की। ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी॥ अति सुरंग है रंग रंगीलो। है गुणवंत बहुत चटकीलो॥ राम भजन बिन कभी न सोता। क्यों सखि साजन? ना सखि तोता॥ अर्ध निशा वह आया भौन। सुंदरता बरने कवि कौन॥ निरखत ही मन भयो अनंद। क्यों सखि साजन? ना सखि चंद॥ शोभा सदा बढ़ावन हारा। आँखिन से छिन होत न न्यारा॥ आठ पहर मेरो मनरंजन। क्यों सखि साजन? ना सखि अंजन॥ जीवन सब जग जासों कहै। वा बिनु नेक न धीरज रहै॥ हरै छिनक में हिय की पीर। क्यों सखि साजन? ना सखि नीर॥ बिन आये सबहीं सुख भूले। आये ते अँग-अँग सब फूले॥ सीरी भई लगावत छाती। क्यों सखि साजन? ना सखि पाति॥

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