गगग

Tuesday, August 6, 2019

लेखक : उपनाम
1. जयशंकर साहू - 'प्रसाद'
2. सूर्यकांत त्रिपाठी - 'निराला'
3. गुसाईं दत्त - सुमित्रानन्दन पन्त
4. धनपत राय – प्रेमचन्द
5. रामधारी सिंह - 'दिनकर’
6. मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग ख़ान – मिर्ज़ा ग़ालिब
7. मुन्नन द्विवेदी - शांतिप्रिय द्विवेदी
8. हरिप्रसाद द्विवेदी - वियोगि हरि
9. वैद्यनाथ मिश्र – नागार्जुन
10. हरिवंश राय श्रीवास्तव - 'बच्चन'
11. रघुपति सहाय - फिराक गोरखपुरी
12. सम्पूर्ण सिंह कालरा – गुलज़ार
13. धर्मवीर सक्सेना - धर्मवीर भारती
14. पुष्पलता शर्मा – पुष्पा भारती
15. शिवमंगल सिंह - 'सुमन'
16. मदन मोहन गुगलानी - मोहन राकेश
17. कैलाश सक्सेना – कमलेश्वर
18. उपेन्द्रनाथ शर्मा - 'अश्क'
19. फणीश्वर नाथ - 'रेणु'
20. गोपालदास सक्सेना - 'नीरज'
21. श्रीराम वर्मा – अमरकान्त
22. रमेश चन्द्र - शैलेष मटियानी
23. सुदामा पाण्डेय - 'धूमिल'
24. बालस्वरूप भटनागर - 'राही'
25. गंगाप्रसाद उनियाल - 'विमल'
26. रामेश्वर शुक्ल - 'अंचल'
27. वासुदेव सिंह - त्रिलोचन शास्त्री
28. (सच्चिदानंद) हीरानन्द वात्स्यायन - 'अज्ञेय'
29. (तिरूमल्लै) नम्बाकम (वीर) राघव (आचार्य) - रांगेय राघव
30. (पाण्डेय) बेचन शर्मा - 'उग्र'
31. (राय) देवीप्रसाद - 'पूर्ण'
32. (पण्डित) चन्द्रधर शर्मा - 'गुलेरी'
33. बालकृष्ण शर्मा - 'नवीन'
34. गजानन माधव - 'मुक्तिबोध'
35. गोपाल शरण सिंह - 'नेपाली'
36. जनार्दन प्रसाद झा - 'द्विज'
37. सत्यनारायण - 'कविरत्न'
38. भगवान वर्मा - 'लाला भगवानदीन'
39. बालमुकुन्द गुप्त – शिवशम्भु
40. गयाप्रसाद शुक्ल - 'सनेही'
41. अयोध्यासिंह उपाध्याय - 'हरिऔध'
42. नाथूराम शर्मा - 'शंकर'
43. बदरीनारायण चौधरी - 'प्रेमघन'
44. जगन्नाथ दास - 'रत्नाकर'
45. सदासुख लाल - 'नियाज'
46. सैयद गुलाम नबी – 'रसलीन'
47. सैयद इब्राहिम – 'रसखान'
48. मलिक मोहम्मद - 'जायसी'
49. विश्वम्भर नाथ शर्मा - 'कौशिक'
50. चण्डीप्रसाद - 'हृदयेश'
51. हरिकृष्ण शर्मा - 'प्रेमी'
52. गणेशबिहारी मिश्र, श्यामबिहारी मिश्र,
शुकदेवबिहारी मिश्र - 'मिश्रबन्धु'
53. गुलशेर अहमद खान - 'शानी'
54. रामरिख बंसल - ‘मनहर ’
55. काशीनाथ उपाध्याय - बेधडक बनारसी
56. कृष्णदेव प्रसाद गौड - बेढब बनारसी
57. प्रभुलाल गर्ग - काका हाथरसी
58. चन्द्रभूषण त्रिवेदी - रमई काका
59. राजेन्द्र बाला घोष - बंग महिला
60. महेन्द्र कुमारी - मन्नू भण्डारी
61. प्रेम कुमार कुन्द्रा – प्रेम जनमेजय
62. अनिल कुमार जैन – अनिल जनविजय
63. सरोजिनी मलिक - 'प्रीतम'
64. उषा सक्सेना - 'प्रियंवदा'
65. गौरा पन्त - 'शिवानी'
66. सुशील कुमार चड्ढा – हुल्लड़ मुरादाबादी
67. पंडित आनन्द मोहन जुत्शी - गुलज़ार देहल्वी

Saturday, August 3, 2019

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला'
जन्मकाल – 1899 ई.
जन्मस्थान – महिषादल राज्य (बंगाल)
निवास – गढ़ाकोला (बंगाल)
मृत्युकाल – 1961 ई.
पिता – रामसहाय त्रिपाठी
पत्नी – मनोरमा देवी
पुत्री – सरोज
बचपन का नाम – सूर्य कुमार
दर्शन – अद्वैतवाद
हिंदी साहित्य योजना से जुड़ें
अब हम इनकी रचनाओं के बारें में पढेंगे ,रचनाओं को कालक्रम से बताया गया है
प्रमुख रचनाएँ –
अनामिका – 1923 ई. नये पत्ते – 1946 ई. सरोज स्मृति – 1935 ई.
परिमल – 1930 ई. बेला – 1946 ई. चतुरी चमार
गीतिका – 1936 ई. अर्चना – 1950 ई. राग-विराग
तुलसीदास – 1938 ई. आराधना – 1953 ई. गर्म पकौङी
अणिमा – 1943 ई. गीत गुंज – 1954 ई. रानी और कानी
कुकुरमुत्ता – 1948 ई. राम की शक्ति पूजा – 1936 ई. स्फटिक शिला
निराला की सर्वप्रथम कविता – जुही की कली – 1916 ई.

निराला की अंतिम कविता – ’पंत्रोकंठित जीवन का विष बुझा हुआ’ है।

नोट:- रामविलास शर्मा के मतानुसार इनकी सर्वप्रथम कविता ’भारत माता की वंदना’ (1920 ई.) मानी जाती है।

रचनाओं के संबंध में विशेष तथ्य –
1. इनकी ’अनामिका’ एवं ’गीत-गुंज’ रचनाओं के दो-दो संस्मरण प्रकाशित हुए हैं।

प्रथम संस्मरण प्रकाशन वर्ष
अनामिका 1923 ई.
गीत-गुंज 1954 ई.

द्वितीय संस्मरण प्रकाशन वर्ष

अनामिका 1938 ई.

गीत-गुंज 1959 ई.

2. निराला का प्रथम काव्य-संग्रह ’अनामिका’ (1923 ई.) एवं अंतिम काव्य-संग्रह ’सांध्यकाकली’ (1969 ई.) है, जो इनके मरणोपरांत प्रकाशित हुआ।

3. ’अनामिका’ एवं ’परिमल’ कविता संग्रहों में इनकी प्रकृति-प्रेम, सौन्दर्य चित्रण एवं रहस्यवाद संबंधी कविताओं को संकलित किया गया है।

4. ’परिमल’ काव्य संग्रह में इनकी निम्न प्रसिद्ध कविताओं को संगृहीत किया गया है –

1. जुही की कली 2. संध्या-सुंदरी 3. बादल-राग
4. विधवा 5. भिक्षुक 6. दीन
7. बहू 8. अधिवास 9. पंचवटी प्रसंग
नोट:- ’परिमल’ में छायावाद के साथ-साथ प्रगतिवाद के तत्व भी विद्यमान हैं।

5. ’जूही की कली’ कविता में प्रकृति के माध्यम से मानवीय वासनाओं की अभिव्यक्ति अत्यंत प्रभावोत्पादक रूप में हुई है।

6. ’गीतिका’ रचना में कवि ने अपनी भावनाओं को संगीत के स्वरों में प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है।

विषयवस्तु की दृष्टि से इसके गीतों को निम्न चार वर्गों में विभक्त किया जा सकता है –

स्तुतिपरक या प्रार्थनापरक गीत
नारी सौन्दर्य संबंधी गीत
प्रकृति संबंधी गीत
विचार प्रधान गीत

7. तुलसीदास (1938 ई.) – यह निराला जी का श्रेष्ठ प्रबंधात्मक काव्य है। इसमें कवि ने गोस्वामी तुलसीदास के माध्यम से भारतीय परम्परा के गौरवशाली मूल्यों की प्रतिष्ठा का प्रयास किया है। इसमें तुलसीदास द्वारा अपनी पत्नी ’रत्नावली’ से मिलने के लिए उसके पीहर (नैहर) चले जाने एवं पत्नी द्वारा फटकार लगाये जाने पर गृहस्थ-जीवन को त्याग कर रामोपासना में लीन होने की घटना का वर्णन किया गया है। इसी रचना के लेखन के कारण यह माना जाता है कि ये ’तुलसीदास’ को अपना सर्वप्रिय कवि मानते थे।

8. सरोज स्मृति (1935 ई.)- यह एक शोक गीत है जिसे कवि ने अपनी 18 वर्षीय पुत्री सरोज की करुण-स्मृति में लिखा था। इसे हिन्दी साहित्य संसार का सर्वाधिक प्रसिद्ध शोकगीत कहा जाता है। इसमें वात्सल्य एवं करुण दोनों रसों का अद्भुत सामंजस्य दृष्टिगोचर होता है।

9. राम की शक्ति पूजा (1936 ई.) – यह एक लघु प्रबंधात्मक काव्य है, जिसमें निराला का ओज अपनी पूर्ण शक्ति के साथ प्रस्फुटित हुआ है। इस रचना पर ’कृतिवास रामायण’ का प्रभाव दृष्टिगोचर होती है। यह शक्तिकाव्य जिजीविषा एवं राष्ट्रीय चेतना की कविता है।

10. कुकुरमुत्ता (1942 ई.) – इसमें कवि ने पूँजीवादियों पर तीखा व्यंग्य किया है। इसमें कवि ने संस्कृत शब्दावली का प्रयोग नहीं करके ’उर्दू’ व ’अंग्रेजी’ के शब्दों का प्रचुर प्रयोग किया है। इसमें कवि ने सर्वहारा वर्ग की प्रशंसा और धनवानों की घोर निंदा की है।

11. अणिमा – इसमें तीन प्रकार के गीत संगृहीत हैं –

1. भक्ति प्रधान
2. विषादमूलक
3. विचारपरक
इसमें कवि का दृष्टिकोण अधिक यथार्थवादी और शैली अधिक सरल है।

12. नये पत्ते – इसमें कवि की सात व्यंग्य प्रधान कविताओं का संग्रह किया गया है।

कवि के संबंध में अन्य तथ्य –
⇒ हिन्दी साहित्य जगत् में निराला के लिए ’महाप्राण’ शब्द का प्रयोग भी किया जाता है। गंगाप्रसाद पाण्डेय ’महाप्राण निराला’ आलोचना पुस्तक लिखकर यह नाम प्रदान किया था।

⇒ ये हिन्दी कविता को छंदों की परिधि से मुक्त करने वाले कवि माने जाते हैं, अर्थात् इनको ’मुक्तक छंद का प्रवर्तक’ भी कहा जाता है।
नोट – मुक्तक छंद को ’केंचुआ’ या ’रबर’ छंद भी कहते हैं।

⇒ इनको छायावाद, प्रगतिवाद इन तीनों आंदोलनों का पथ-प्रदर्शक भी कहा जाता है।

⇒ ये छायावाद के ’रुद्र (महेश)’ माने जाते हैं।

⇒ डाॅ. रामविलास शर्मा ने इनको ’ओज एवं औदात्य का कवि’ कहा है।

⇔ ये विवेकानंद जी को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे।

⇒ इन्होंने ’मतवाला’ एवं ’समन्वय’ नामक दो पत्रों का संपादन कार्य भी किया था।

⇔ द्विवेदीकालीन कवियों में इनको सर्वाधिक विरोध का सामना करना पङा था।

⇒ प्रसिद्ध ऐतिहासिक लेख – ’भावों की भिङन्त’ यह लेख बालकृष्ण शर्मा ’नवीन’ द्वारा संपादित ’प्रभा’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ था, जिसमें यह सिद्ध किया गया था कि निराला की बहुत-सी कविताएँ रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविताओं की नकल हैं। इस लेख ने तत्कालीन साहित्य जगत् में हलचल मचा दी थी।

⇔ ’रविवार’ को जन्म लेने के कारण सर्वप्रथम इनका मूल नाम ’सूर्यकुमार’ रखा गया था, जिसे सन् 1917-18 ई. में बदलकर इन्हांेने ’सूर्यकान्त’ कर दिया।

⇒ निराला ’परिमल’ की भूमिका में लिखते हैं –

’मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है। मनुष्यों की मुक्ति कर्मों के बंधन से छुटकारा पाना है और कविता की मुक्ति छंद के शासन से अलग हो जाना।’

⇔ निराला ने ’कवित्त’ को ’हिन्दी का जातीय छंद’ कहा है।

⇒ निराला को ’ओज एवं औदात्य’ का कवि माना जाता है। इनकी तुलना अमरीकी कवि वाल्ट व्हिटमैन से की जाती है।

⇔ निराला को छायावाद का ’श्लाका पुरुष’ भी कहा जाता है।

⇒ आचार्य नंददुलारे वाजपेयी ने निराला को ’शताब्दी का कवि’ कहा है।

⇔ डाॅ. नामवर सिंह ने निराला की कविता को ’शताब्दी का काव्य’ कहा है।

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की कविता –
1. ’बादल राग’ 5. ’वर दे’
2. ’संध्या सुंदरी’ 6. ’सम्राट अष्टम एडवर्ड के प्रति’
3. ’यमुना के प्रति’ 7. तोङती पत्थर’।
4. ’वर दे वीणा वादिनी’

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के उपन्यास –
अप्सरा (1931 ई.) प्रभावती (1936 ई.)
अलका (1933 ई.) चोटी की पकङ
निरूपमा (1936 ई.) काले कारनामे (1950 ई.)
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की पंक्तियाँ –
’दुख ही जीवन की कथा रही। ’

’जीर्ण बाहु है, शीर्ण शरीर, तुझे बुलाता कृषक,
अधीर ए विप्लव के वीर।’

’देश काल के शर से बिंध कर
यह जागा कवि अशेष छवि धर।’

’’अमिय गरल शशि सीकर रविकर, राग-विराग भरा प्याला।
पीते हैं जो साधक, उनका प्यारा है मतवाला।।’’

’लखकर अनर्थ आर्थिक पथ पर
हारता रहा मैं स्वार्थ समर।’

’ये कान्यकुब्ज कुल कुलांगार, खाकर पत्तल में करें छेद,
उनके कर कन्या अर्थ खेद।’

’ब्राह्मण समाज में ज्यों अछूत’।

’धिक जीवन जो पाता ही आया विरोध’।
छायावाद की परिभाषा : वरिष्ठ विद्वानों द्वारा


1.आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने छायावाद को स्पष्ट करते हुए लिखा है -"छायावाद शब्द का प्रयोग दो अर्थों में समझना चाहिए। एक तो रहस्यवाद के अर्थ में,जहां उसका संबंध काव्य-वस्तु से होता है अर्थात् जहां कवि उस अनंत और अज्ञात प्रियतम को को आलम्बन बनाकर अत्यंत चित्रमयी भाषा में प्रेम की अनेक प्रकार से व्यंजना करता है। छायावाद शब्द का दूसरा प्रयोग काव्य शैली या पद्धति-विशेष के व्यापक अर्थ में है।... छायावाद एक शैली विशेष है,जो लाक्षणिक प्रयोगों,अप्रस्तुत   विधानों और अमूर्त उपमानों को लेकर चलती है।"

2.महादेवी वर्मा के अनुसार "छायावाद का कवि धर्म के अध्यात्म से अधिक दर्शन के ब्रह्म का ऋणी है, जो मूर्त और अमूर्त विश्व को  मिलाकर पूर्णता पाता है। ... अन्यत्र वे लिखती हैं कि "छायावाद प्रकृति के बीच जीवन का उद्-गीथ है।"

3.डॉ. राम कुमार वर्मा के अनुसार 1."आत्मा और परमात्मा का गुप्त वाग्विलास रहस्यवाद है और वही छायावाद है।"
2."छायावाद या रहस्यवाद जीवात्मा की उस अंतर्निहित प्रवृत्ति का प्रकाशन है जिसमें वह दिव्य और अलौकिक सत्ता से अपना शांत और निश्चल संबंध जोड़ना चाहती है और यह संबंध इतना बढ़ जाता है कि दोनों में कुछ अंतर ही नहीं रह जाता है।"
3."परमात्मा की छाया आत्मा पर पड़ने लगती है और आत्मा की छाया परमात्मा पर। यही छायावाद है।"

4.आचार्य नंददुलारे वाजपेयी के अनुसार -"मानव अथवा प्रकृति के सूक्ष्म किंतु व्यक्त सौंदर्य में आध्यात्मिक छाया का भान मेरे विचार से छायावाद की एक सर्वमान्य व्याख्या हो सकती है।"

5.शांतिप्रिय द्विवेदी ने छायावाद और रहस्यवाद में गहरा संबंध स्थापित करते हुए कहा है-"जिस प्रकार मैटर ऑफ़ फैक्ट(इतिवृत्तात्मक) के आगे की चीज छायावाद है, उसी प्रकार छायावाद के आगे की चीज रहस्यवाद है।"

6.गंगाप्रसाद पांडेय ने कहा -"छायावाद नाम से ही उसकी छायात्मकता स्पष्ट है। विश्व की किसी वस्तु में एक अज्ञात सप्राण छाया की झांकी पाना अथवा उसका आरोप करना ही छायावाद है। ...जिस प्रकार छाया स्थूल वस्तुवाद के आगे की चीज है, उसी प्रकार रहस्यवाद छायावाद के आगे की चीज है।"

7.छायावाद के स्तम्भ जयशंकर प्रसाद ने छायावाद को अपने ढ़ग से परिभाषित करते हुए कहा है - "कविता के क्षेत्र में पौराणिक युग की किसी घटना अथवा देश-विदेश की सुंदरी के बाह्य वर्णन से भिन्न जब वेदना के आधार पर स्वानुभूतिमयी अभिव्यक्ति होने लगी तब हिंदी में उसे छायावाद के नाम से अभिहित किया गया।"

8.डॉ. नगेन्द्र छायावाद को "स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह मानते हैं"।

9."राष्ट्रीय जागरण की काव्यात्मक अभिव्यक्ति" - नामवर सिंह जी

🅰 भारतीय संविधान के अनुच्छेद और उनके विषय [Indian Constitution Articles And Their Subject] अनुच्छेद (Article) 1 – संघ का नाम औ राज्य क्षे...