गगग

Wednesday, July 31, 2019

@रीतिकालीन शिल्पगत विशेषताएँ :
(1) सतसई परम्परा का पुनरुद्धार
(2) काव्य भाषा-वज्रभाषा (श्रुति मधुर व कोमल कांत पदावलियों से युक्त तराशी हुई भाषा)
(3) काव्य रूप-मुख्यतः मुक्तक का प्रयोग
(4) दोहा छंद की प्रधानता (दोहे 'गागर में सागर' शैली वाली कहावत को चरितार्थ करते है तथा लोकप्रियता के लिहाज से संस्कृत के 'श्लोक' एवं अरबी-फारसी के शेर के समतुल्य है।); दोहे के अलावा 'सवैया' (श्रृंगार रस के अनुकूल छंद) और 'कवित्त' (वीर रस के अनुकूल छंद) रीति कवियों के प्रिय छंद थे। केशवदास की 'रामचंद्रिका' को 'छंदों' का अजायबघर' कहा जाता है।
@रीतिमुक्त/रीति स्वच्छन्द काव्य की विशेषताएँ : बंधन या परिपाटी से मुक्त रहकर रीतिकाव्य धारा के प्रवाह के विरुद्ध एक अलग तथा विशिष्ट पहचान बनाने वाली काव्यधारा 'रीतिमुक्त काव्य' के नाम से जाना जाता है। रीतिमुक्त काव्य की विशेषताएँ थीं :
(1) रीति स्वच्छंदता
(2) स्वअनुभूत प्रेम की अभिव्यक्ति
(3) विरह का आधिक्य
(4) कला पक्ष के स्थान पर भाव पक्ष पर जोर
(5) पृथक काव्यादर्श/प्राचीन काव्य परम्परा का त्याग
(6) सहज, स्वाभाविक एवं प्रभावी अभिव्यक्ति
(7) सरल, मनोहारी बिम्ब योजना व सटीक प्रतीक विधान
रीतिकालीन देव ने फ्रायड की तरह, लेकिन फ्रायड के बहुत पहले ही, काम (Sex) को समस्त जीवों की प्रक्रियाओं के केन्द्र में रखकर अपने समय में क्रांतिकारी चिंतन दिया।
@प्रसिद्ध पंक्तियाँ
@इत आवति चलि, जाति उत चली छ सातक हाथ।
चढ़ि हिंडोरे सी रहै लागे उसासनु हाथ।।
(विरही नायिका इतनी अशक्त हो गयी है कि सांस लेने मात्र से छः सात हाथ पीछे चली जाती है और सांस छोड़ने मात्र से छः सात हाथ आगे चली जाती है। ऐसा लगता है मानो जमीन पर खड़ी न होकर हिंडोले पर चढ़ी हुई है।) -बिहारी
@वासर की संपति उलूक ज्यों न चितवत
(जिस तरह दिन में उल्लू संपत्ति की ओर नहीं ताकते उसी तरह राम अन्य स्त्रियों की तरफ नहीं देखते।) -केशवदास
@आगे के कवि रीझिहें, तो कविताई, न तौ
राधिका कन्हाई सुमिरन को बहानो है।
(आगे के कवि रीझें तो कविता है अन्यथा राधा-कृष्ण के स्मरण का बहाना ही सही।) -भिखारी दास
@जान्यौ चहै जु थोरे ही, रस कविता को बंस।
तिन्ह रसिकन के हेतु यह, कान्हों रस सारंस।। -भिखारी दास
@काव्य की रीति सिखी सुकवीन सों
(मैंने काव्य की रीति कवियों से ही सीखी है।) -भिखारी दास
@तुलसी गंग दुवौ भए सुकविन के सरदार -भिखारी दास
@रीति सुभाषा कवित की बरनत बुधि अनुसार -चिंतामणि
@अपनी-अपनी रीति के काव्य और कवि-रीति -देव
@अति सूधो सनेह को मारग है, जहाँ नैकु सयानप बाँक नहीं।
तहँ साँचे चलैं ताजि आपनपौ, झिझकै कपटी जे निसांक नहीं।। -घनानन्द
@यह कैसो संयोग न सूझि पड़ै जो वियोग न एको विछोहत है -घनानंद
@मोहे तो मेरे कवित्त बनावत। -घनानंद
@यह प्रेम को पंथ कराल महा तरवारि की धार पर धाबनो है -बोधा
जदपि सुजाति सुलक्षणी सुवरण सरस सुवृत्त।
भूषण बिनु न विराजई कविता वनिता मीत।। -केशवदास
@लोचन, वचन, प्रसाद, मुदृ हास, वास चित्त मोद।
इतने प्रगट जानिये वरनत सुकवि विनोद।। -मतिराम
@युक्ति सराही मुक्ति हेतु, मुक्ति भुक्ति को धाम।
युक्ति, मुक्ति और भुक्ति को मूल सो कहिये काम।। -देव
@दृग अरुझत, टूटत कुटुम्ब, जुरत चतुर चित प्रीति।
पड़ति गांठ दुर्जन हिये दई नई यह रीति।। -बिहारी
@फागु के भीर अभीरन में गहि
गोविंदै लै गई भीतर गोरी।
भाई करी मन की पद्माकर,
ऊपर नाहिं अबीर की झोरी।
छीनी पितंबर कम्मर ते सु
विदा दई मीड़ि कपोलन रोरी
नैन नचाय कही मुसकाय,
'लला फिर आइयो खेलन होरी' । -पद्माकर
@आँखिन मूंदिबै के मिस,
आनि अचानक पीठि उरोज लगावै -चिंतामणि
@मानस की जात सभै एकै पहिचानबो -गुरु गोविंद सिंह
@अभिधा उत्तम काव्य है मध्य लक्षणा लीन
अधम व्यंजना रस विरस, उलटी कहत प्रवीन। -देव
@अमिय, हलाहल, मदभरे, सेत, स्याम, रतनार।
जियत, मरत, झुकि-झुकि परत, जेहि चितवत एक बार।। -रसलीन
@भले बुरे सम, जौ लौ बोलत नाहिं
जानि परत है काक पिक, ऋतु बसंत के माहिं। -वृन्द
@कनक छुरी सी कामिनी काहे को कटि छीन -आलम
@नेही महा बज्रभाषा प्रवीन और सुंदरतानि के भेद को जानै -बज्रनाथ
@एक सुभान कै आनन पै कुरबान जहाँ लगि रूप जहाँ को -बोधा
@आलम नेवाज सिरताज पातसाहन के
गाज ते दराज कौन नजर तिहारी है -चन्द्रशेखर
@देखे मुख भावै अनदेखे कमल चंद
ताते मुख मुरझे कमला न चंद। -केशवदास
@सटपटाति-सी ससि मुखी मुख घूँघट पर ढाँकि -बिहारी
@मेरी भव बाधा हरो -बिहारी
@कुंदन का रंग फीको लगै, झलकै अति अंगनि चारु गोराई।
आँखिन में अलसानि, चित्तौन में मंजु विलासन की सरसाई।।
को बिन मोल बिकात नहीं मतिराम लहे मुसकानि मिठाई।
ज्यों-ज्यों निहारिए नेरे है नैननि त्यों-त्यों खरी निकरै सी निकाई।। -मतिराम
@तंत्रीनाद कवित्त रस सरस राग रति रंग।
अनबूड़े बूड़ेतिरे जे बूड़ेसब अंग।। -बिहारी
@साजि चतुरंग वीर रंग में तुरंग चढ़ि -भूषण
@गुलगुली गिलमैं, गलीचा है, गुनीजन हैं, चिक हैं, चिराकैं है, चिरागन की माला हैं।
कहै पदमाकर है गजक गजा हूँ सजी,
सज्जा हैं, सुरा हैं, सुराही हैं, सुप्याला हैं। -पद्माकर
@रावरे रूप की रीति अनूप, नयो नयो लागै ज्यौं ज्यौं निहारियै।
त्यौं इन आँखिन बानि अनोखी अघानि कहूँ नहिं आन तिहारियै। -घनानंद
@घनानंद प्यारे सुजान सुनौ, इत एक तें दूसरो आँक नहीं।
तुम कौन सी पाटी पढ़े हो लला, मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं।।
[सुजान-घनानंद की प्रेमिका का नाम: घनानंद ने प्रायः सुजान
(एक अर्थ-सुजान, दूसरा अर्थ-श्रीकृष्ण) को संबोधित करते हुए अपनी कविताएँ रची है] -घनानंद
@चाह के रंग मैं भीज्यौ हियो, बिछुरें-मिलें प्रीतम सांति न मानै।
भाषा प्रबीन, सुछंद सदा रहै, सो घनजी के कबित्त बखानै।। -बज्रनाथ (घनानंद के कवि-मित्र एवं प्रशस्तिकार)
@उत्तर-मध्यकालीन/रीतिकालीन रचना एवं रचनाकार
चिंतामणि- कविकुल कल्पतरु, रस विलास, काव्य विवेक, श्रृंगार मंजरी, छंद विचार
मतिराम- रसराज, ललित ललाम, अलंकार पंचाशिका, वृत्तकौमुदी
राजा जसवंत सिंह -भाषा भूषण
भिखारी दास- काव्य निर्णय, श्रृंगार निर्णय
याकूब खाँ -रस भूषण
रसिक सुमति- अलंकार चन्द्रोदय
दूलह- कवि कुल कण्ठाभरण
देव- शब्द रसायन, काव्य रसायन, भाव विलास, भवानी विलास, सुजान विनोद, सुख सागर तरंग
कुलपति मिश्र- रस रहस्य
सुखदेव मिश्र- रसार्णव
रसलीन -रस प्रबोध
दलपति राय -अलंकार रत्नाकर
माखन- छंद विलास
बिहारी- बिहारी सतसई
रसनिधि- रतनहजारा
घनानन्द- सुजान हित प्रबंध, वियोग बेलि, इश्कलता, प्रीति पावस, पदावली
आलम- आलम केलि
ठाकुर- ठाकुर ठसक
बोधा- विरह वारीश, इश्कनामा
द्विजदेव -श्रृंगार बत्तीसी, श्रृंगार चालीसी, श्रृंगार लतिका
लाल कवि- छत्र प्रकाश (प्रबंध)
पद्माकर भट्ट- हिम्मत बहादुर विरुदावली (प्रबंध)
सूदन -सुजान चरित (प्रबंध)
खुमान- लक्ष्मण शतक
जोधराज -हम्मीर रासो
भूषण- शिवराज भूषण, शिवा बावनी, छत्रसाल दशक
वृन्द- वृन्द सतसई
राम सहाय दास- राम सतसई
दीन दयाल गिरि -अन्योक्ति कल्पद्रुम
गिरिधर कविराय -स्फुट छन्द
गुरु गोविंद सिंह -सुनीति प्रकाश, सर्वसोलह प्रकाश, चण्डी चरित्र|

🅰 भारतीय संविधान के अनुच्छेद और उनके विषय [Indian Constitution Articles And Their Subject] अनुच्छेद (Article) 1 – संघ का नाम औ राज्य क्षे...